467/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
नियत और नियति
दोनों में ज्यादा दूरी नहीं
नियत की निर्मिति है
ये नियति,
जैसे हो नियत
वैसी बने नियति।
नियत गंदी भी
स्वच्छ भी है,
नियत तो
दर्पण की तरह
साफ दिख जाती है।
बॉडी लैंग्वेज
क्रिया विधि
अथवा वाणी
सबमें नियत का वास है।
नियत को
पहचानना खास है,
नियत में ही युवती
बहन भाभी है
उसी में माँ है
वही सोच की चाभी है।
नियत पहला कदम है
तो नियति उसकी
मंजिल है,
कौन नहीं जानता कि
अगले की आँख में
नियत बिगड़ी है
या सुघर बनी है!
शुभमस्तु !
24.08.2025●9.45आ०मा०
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