रविवार, 31 अगस्त 2025

कर्म कौन सा पुण्य है [ सजल ]

 482/2025


        

समांत           :आप

पदांत           : अपदांत

मात्राभार      : 24.

मात्रा पतन    : शून्य


©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


जगत   कर्म    में लीन है,किंतु न जाने  माप।

कर्म  कौन  सा  पुण्य है ,और कौन सा पाप!!


अपना  सुख  संतोष ही,समझें सभी  महान।

सभी   चाहते  छोड़ना, अपनी  ही पदचाप।।


माल   पराया   छीनते,  रटें  राम  का   नाम।

रँगे  गेरुआ वस्त्र वे ,करें दिवस-निशि  जाप।।


आपस  के  संघर्ष  में ,लिप्त  हुए  बहु  देश।

बढ़ा  हुआ  है विश्व का,विकट भयंकर ताप।।


लिए  कटोरा   हाथ में, माँग  रहा जो  भीख।

अमरीका    की   गोद में, बैठा  करे विलाप।।


कहीं   बमों का   शोर  है,आतंकी  अति  क्रूर।

रार     मचाते     देश   में, माँग   रहे कंटाप।।


'शुभम्'  देश   आजाद  है , किंतु शांति  है दूर।

लगता भारतवर्ष के, लिखा भाग्य अभिशाप।।


शुभमस्तु !


31.08.2025●10.15 प०मा०

                 ●●●

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...