गुरुवार, 21 अगस्त 2025

दृष्टि का कोण [अतुकांतिका]

 446/2025


              

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


अनुभूत है ये

कि दृष्टि में कभी

ऋजुता नहीं होती,

वह सदा 

कोण से ही

जागती सोती।


इसीलिए 

दृष्टिकोण होता है,

कोण की 

अनिवार्यता है वहाँ

सरलता का

कोई काम नहीं।


कोई भी कोण

न्यून कोण

अधिकन कोण

सम कोण

विषम कोण

प्रतिवर्ती कोण

हो सकता है,

उसे ऋजु 

करने के लिए

ऋजुता लानी पड़ती है।


प्रत्येक कोण की

अपनी-अपनी डिग्री है,

कोण बदलने से ही

बात बनी है

 बात बिगड़ी भी है।


कोई भी कोण

किसी से होड़

नहीं कर सकता,

क्योंकि हर कोण का

अपना ही मोड़ है

अपना ही मोड है

यही तो कोणों का

जटिल भेद है।


शुभमस्तु !


21.08.2025● 11.45 आ०मा०

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