मंगलवार, 5 अगस्त 2025

कान भी ध्यान भी [ व्यंग्य ]

 402/2025

          

©व्यंग्यकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'

ध्यान का कान से और कान का ध्यान से घनिष्ठ सम्बंध है।ध्यान अंदर है और दोनों कान बाहर हैं। जब तक इन तीनों के तार न मिल जाएँ ,तब तक ध्यान ध्यान नहीं रहता। कान खुले रहते हैं,और भान तक नहीं होता। ध्यान के लिए कान और ध्यान की तान मिलना जरूरी है।वरना ध्यान का लगना या ध्यान का मजबूरी है।यद्यपि कान और ध्यान (मष्तिष्क) के बीच बहुत अधिक नहीं दूरी है।तथापि उनका जुड़ना जरूरी है।

विद्यार्थी कक्षा में बैठा रहता है ,उसके कान भी खुले रहते हैं ,आँखें भी यथास्थान खुली रहती हैं,किन्तु यदि ध्यान कहीं अन्यत्र है,तो कान कुछ सुनेंगे नहीं और आँखें कुछ देखेंगीं नहीं।पूरी कथा समाप्त हो जाती है और श्रोता को यह तक पता नहीं होता कि सीता जी राम की कौन थीं। वह देह से वहीं पर विराजता है ,किंतु ध्यान से अन्यत्र होने के कारण वह कान से बहरा हो जाता है।उसकी श्रवण शक्ति शून्य हो जाती है।

कार, बस, ट्रक या बाइक चलाते समय यदि चालक का ध्यान कहीं और है तो उसके दुर्घटनाग्रस्त होने की पूरी आशंका है।ध्यान की एकाग्रता हर छोटे से छोटे और बड़े से बड़े काम को करते समय अनिवार्य है। बिना ध्यान की एकाग्रता के कोई घसियारा सही तरह घास भी नहीं खोद सकता।इसलिए एकाग्रता का अभ्यास करना चाहिए।आजकल लोग वाहन चलाते समय प्रायः मोबाइल चलाते हैं। वे मोबाइल नहीं चलाते,बल्कि मोबाइल उन्हें चलाता है और एक समय ऐसा आता है कि वे किसी अन्य वाहन,खंभे, डिवाइडर,पैदल यात्री आदि से भिड़ंत कर लेते हैं। कान में गाने की लीड लगाकर ध्यान मग्न होने वालों का हस्र रेल की पटरियों पर होता हुआ प्रायः देखा सुना और पढ़ा जाता है। और दोष रेलगाड़ी पर मढ दिया जाता है कि देखकर नहीं चल सकती थी कि उनके लाल या लाली को हलाल कर दिया।इसी प्रकार की दुर्घटनाएँ सड़क पर नित्य प्रति होना आम हो गया है और विडम्बना यह है कि दोष हमेशा बड़े वाहन चालक के मत्थे मढ दिया जाता है।गलती करे छोटा और सजा  भुगत रहा है मोटा।कैसा जमाना आया है खोटा।


ध्यान कान या आँख में नहीं,दिमाग के उस विभाग में है;जो उसे आवंटित किया गया है कि हे वत्स !तुम ये काम सँभालो ,वरना ये कान केवल अंधड़ बिल बने रह जाएँगे । आँखें भी खुली की खुली रह जाएंगी ,पर ध्यान जब टूटेगा तो तभी जब तुम समूचे टूट चुकोगे।यह ध्यान सबके वश का नहीं,सबके वश में भी नहीं। जब तक झटका नहीं ,तब तक आदमी मटका नहीं,इस तरफ फ़टका नहीं। पर अब क्या होत जब  चिड़ियाँ चुग गईं खेत। अब तो पड़ी रह गई है रेत।उसी रेत को लपेट और अनहोनी से कर भेंट। पर आदमी इतना समझदार है भी कहाँ जो बिना झटका लगे मान ले।बिना सावधान किए इस बात को जान ले कि घास खोदने में भी ध्यान की एकाग्रता जरूरी है, वरना तेरी किसी पल  इस धरा धाम से बढ़ जाने वाली दूरी है।


अंत में इतनी- सी बात ध्यानो। मानो तो मानो न मानो तो जितनी अपनी तान सको ,तानो।ध्यान के साथ कान और कान के साथ ध्यान के तार जोड़ो।इतने भी निर्मोही न बनो ,असमय जिंदगी से जानबूझकर नाता मत तोड़ो। या हॉस्पिटल के पलंग पर पड़े-पड़े बैड को तोड़ो।ध्यान बाँटने वाले बहुत हैं,ध्यान जोड़ने या दिलाने वाले कम।इस छोटी सी बात को समझने में लगा दो दम ,अन्यथा कहाँ फूटेगा  ध्यान का बम ;कोई नहीं जानता।पर क्या कीजिए आदमी है ही इतना महा महा महा बुद्धिमान कि  मेरे जैसे अकिंचन की नहीं मानता। न मानो तो किसी आड़ में जाओ और  जोर - जोर से अपना सिर खुजलाओ। 

शुभमस्तु !

05.08.2025●2.30प०मा०

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