सोमवार, 18 अगस्त 2025

भाट-से जिनके किले हैं [ नवगीत ]

 442/2025


    

©शब्दकार

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'


भाट  - से 

जिनके किले हैं।



शेर - से 

वे कम नहीं हैं

गीदड़ों की

दम नहीं है

सिर उठाए

वे चले हैं।


चार आगे

चार पीछे

बगल में कुछ

उन्हें भींचे

जब मिले

ऐसे मिले हैं।


जब दहाड़ें

सिंह जैसे

हैं हृदय के

संग वैसे

छलते सदा

किसने छले हैं?


शुभमस्तु !


18.08.2025● 3.00 प०मा०

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