425/2025
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
पंख मिले हैं
उड़ना ही है
धमकाने वालो।
कौन उड़ा करता
पंखों से
सबल हौसला हो
महल नहीं हो
चाहे कोई
एक घोंसला हो
किसी अन्य से
नाक न मोड़ो
उबकाने वालो।
जाना कहाँ
पता है इतना
खुला हुआ आकाश
रास नहीं
आता है तुमको
कभी किसी का प्राश
ढूँढ़ रहे
गतियों में अंतर
भरमाने वालो।
तोड़ मनोबल
मुझ पखेरु का
क्या तुम पाओगे
बिंदी की
चिंदी बिखेरते
तुम मुस्काओगे
आजादी के
हर्ता हो तुम
बहकाने वालो।
शुभमस्तु !
12.08.2025● 9.45 आ०मा०
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