बुधवार, 6 अगस्त 2025

चपरकनाती [व्यंग्य]

 404/2025

 

 ©व्यंग्यकार 

डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्' 

 एक स्वाभिमानी सच्चा साहसी और सशक्त साहित्यकार कभी 'चपरकनाती' नहीं होता। वह अपने सच्चे मन से केवल साहित्य की सेवा करता है।वह व्यक्ति पूजा में विश्वास नहीं करता।वह मात्र साहित्य का पुजारी होता है।इसलिए जो भी कहता है,वह डंके की चोट पर कहता है।उसके कथन में कभी लाग - लपेट या मक्खनबाजी की बू नहीं आती।वह सहित्य का सच्चा साधक होता है।वह साहित्य की अतल गहराइयों में लगाता गोता है। साहित्यकार साहित्य की धुन का धमाकेदार तोता है। 

  जिस व्यक्ति ने अपना स्वाभिमान चापलूसी से बेच खाया है,वही रातों रात महा कवि कहलाया है।उसे हजारों लाखों रुपये के चैक से सजाया गया है और साथ में शॉल नारियल और सम्मान पत्र से नवाजा गया है। ऐसे चपरकनाती साहित्यकारों की बाढ़ आई हुई है। और गली-गली ,नगर-नगर,सड़क -सड़क पर मुनादी हुई है। जमाना ऐसे ही चपरकनाती चापलूस स्वचोरित साहित्य के रचनाकारों का है।नेताओं का चरण चुम्बन कीजिए और बड़े से बड़ा सम्मान और अवार्ड कब्जे में लीजिए।राजनीति तो चपरकनातियों से भरी हुई है। वह बिना चपरकनातियों के चार कदम भी नहीं चल सकती। तो जो साहित्यकार उसके सहारे है,उसकी ही पौ बारह हैं,बहारें हैं।असली सोने से नकली सोने में चमक ज्यादा ही होती है।वह चपरकनाती चमक यहाँ भी बरकरार है। बहार ही बहार है।

  'चपरकनात' शब्द का निर्माण दो शब्दों 'चपर' और 'कनात' से संयोजित होकर हुआ है। ये चपर शब्द 'चपत' का ही एक बिगड़ा हुआ रूप है। चपत शब्द से तो प्रायः सभी परिचित हैं,जिसे थप्पड़ या झापड़ के रूप में प्रसिद्धि मिली हुई है। कनात तो वही है ,जो किसी समारोह विवाह- शादी आदि के अवसर पर दोष -आच्छादन के लिए सजा दी जाती है।वह आड़ ही कनात है। इस प्रकार जो झापड़ या थप्पड़ की आड़ में कार्य करता है ,वही 'चपरकनाती' कहलाता है।

  'चपरकनाती' एक टू इन वन शब्द है;जो एक ओर भाववाचक संज्ञा है तो दूसरी ओर कुशल विशेषण भी है। जिसके साथ लग जाय,लग ही जाता है। वह उससे कैसे पीछा छुड़ाता है,वही जाने। पर उसे भी तो एक क्या अनेक चपरकनातियों की जरूरत है,तो पीछा छुड़ाएगा क्यों ,पीछे- पीछे लगाएगा ही। अपने दोष भी तो छिपाने हैं।एक वही है जिसके बलबूते पर अखबारों में फोटो सहित नाम और समाचार भी तो छपाने हैं। इसी से मिलता-जुलता शब्द चपरासी है। वह भी अपने वरिष्ठों अधिकारियों या कर्मचारियों की खुशामद की आड़ में कार्य करता है,इसलिए चपरासी है।

  देश में चपरकनातियों ने देश का बंटाढार कर रखा है।नेताओं से ज्यादा ये चपरकनाती ही ज्यादा नाच नचाते हैं।यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ रायता फैलाते हैं और रायता फैलाकर स्वयं साफ बचकर निकल जाते हैं और दूसरों को गर्म पानी में डलवाते हैं।इन चपरकनातियों ने नेताओं को सिर पर चढ़ा रखा है।उन्हें अपनी चपर - चपर से ऐसा पाठ पढ़ा रखा है कि देश आगे ही नहीं बढ़ पा रहा है।किसी भी चपरकनाती की बहुत सारी विशेषताएँ हैं। वह अपना सिर सदा झुकाए रखता है,इसलिए विनत है।कभी भी नेता बनने की कोशिश नहीं करता। यदि उससे कह दो कि यहाँ खड़ा रह ,तो मजाल है कि कनात की टस से मस भी हो जाए ! जो कनात बाजी का गुण है,उसे वह कैसे छोड़ सकता है। 

   विश्वास पात्र चपरकनाती का काम है अपने बॉस या नेताजी का विश्वास हासिल कर लेना। उसके कारण नेता कान का कच्चा हो जाता है। जैसे भी वह उसके कान भरता है ,वह उसे पत्थर की लकीर मानता है। वह उसका बाँया हाथ बनकर जीता है।इसलिए उसका हाथ कभी नहीं रीता है।यदि वह चाहे तो कर देता बड़ा-बड़ा फजीता है। क्योंकि वही तो नेताजी का मन चीता है। उसी ने तो अपने करतब - कारनामों से उसका मन जीता है। 

 यदि आप भी किसी चपरकनाती की तलाश में हैं,तो सावधान हो जाइए।जिस प्रकार दीवाल में आला और घर में साला घर को कमजोर बनाते हैं ,वैसे ही आपकी सारी पोलपट्टी का ढँकाऊ, छिपाऊ और उघराऊ बातों का राज जानने वाला यही तो है।वह चाहे तो घर का तख्ता पलट कर सकता है।घर की कहानी को उलट - पलट कर सकता है। चपरकनातियों से सदा सावधान रहिए।अपनी राज की बात उनसे कभी मत कहिए। चपरकनाती से निश्चित दूरी बनाकर रहिए।वह जितना सहायक है, उतना ही खलनायक है। वही तो आपका मोबाइल पहिया है।जो आपको चलाने के सरिता की नैया है।सावधान न रहा जाए तो नाव डुबा भी सकती है और ठीकठाक चले तो पार लगा भी सकती है। आइए चपरकनातियों से अपनी निर्भरता हटाएँ और अपने ही पैरों में मजबूती लाएँ। बुद्धि से काम करें,विवेक को जगाएँ। 

 शुभमस्तु !

 06.08.2025●6.30आ०मा० 

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